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Wednesday, October 11, 2023

नालंदा विश्वविद्यालय: एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर

संवाददाता -  रोहिणी राजपूत 













 



प्राचीन काल में भारतवर्ष शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आगे हुआ करता था। नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति और शिक्षा के महासागर में एक महत्वपूर्ण द्वीप है। यह विश्वविद्यालय भारतीय सांस्कृतिक और शैक्षणिक इतिहास का महत्वपूर्ण केंद्र था और अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ की शिक्षा-पद्धति पूरे विश्व में आश्चर्य का विषय थी। इसी वजह से नालंदा विश्वविद्यालय मे शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोग तिब्बत, तुर्की, जापान, चीन, इंडोनेशिया, तिब्बत, फारस तथा कोरिया जैसे देशों से भारत आते थे।


 यहाँ प्रवेश लेने के लिए तीन स्तरों वाली बहुत ही कठिन प्रवेश परीक्षा हुआ करती थी। अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र ही इन परीक्षाओं में सफल होकर यहाँ प्रवेश पाते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने यहाँ आकर शिक्षा प्राप्त की और यहाँ के जीवन के बारे में अपनी किताब में लिखा।


प्राचीन भारत में बहुत से विश्वविद्यालय हुआ करते थे जिनमे से एक महान विश्वविद्यालय नालन्दा भी था जो कि अपनी समृद्ध विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए पूरे विश्व में जाना जाता था। नालन्दा विश्वविद्यालय बिहार राज्य जिसे पहले मगध के नाम से जाना जाता था की राजधानी पटना के 95 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व बिहार शरीफ के पास स्थित हैं। 1193 में आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिए जाने के बाद आज बस यहाँ पर इसके खंडहर बचे है जिसे यूनेस्को के द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया गया है।













नालन्दा विश्वविद्यालय दुनिया के सबसे पुराने और बेहतरीन आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक था। उस समय यहाँ पर करीब 10,000 छात्र और 2000 शिक्षक रहते थे। नालंदा विश्वविद्यालय में तीन लाख किताबों से भरा एक विशाल पुस्तकालय, तीन सौ से भी ज्यादा कमरें और सात विशाल कक्ष थे। इसका भवन बहुत ही सुंदर और विशाल था जिसकी वास्तुकला भी अत्याधिक सुंदर थी।


प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में एक मुख्य प्रवेश द्वार था बाकी का सारा परिसर चारदीवारी से घिरा हुआ था। परिसर में अनेक स्तूप, मठ और मंदिर थे इन मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ विराजमान थीं। आज इस सुंदर भवन का बस खंडहर ही बाकी है पर इससे भी इस भवन की सुंदरता का अंदाज लग जाता है।


 यहाँ के विशाल पुस्तकालय में विदेशी आक्रान्ताओं के द्वारा आग लगा दी गई थी तो यह किताबें 6 महीने तक जलती रही थीं।
जो नालंदा विश्वविद्यालय कभी बहुत ही विशाल क्षेत्र में फैला था, वह अब सिमट कर केवल लगभग 12 हेक्टेयर का खंडहर रह गया है। नालंदा में सभी तरह के विषय पढ़ाए जाते थे जिन्हे पढ़ने के लिए कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस और तुर्की के विद्यार्थीऔर विद्वान दोनों ही आते थे।
















भारतीय गणित के जनक माने जाने वाले आर्यभट्ट के बारे में अनुमान लगाया जाता है कि वे छठी शताब्दी की शुरुआत में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख थे। कोलकाता स्थित गणित की प्रोफेसर अनुराधा मित्रा ने बताया, "आर्यभट्ट पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने शून्य को एक अंक के रूप में मान्यता दी। उनकी आवधारणा से बहुत बड़े बदलाव देखने को मिले। चाणक्य ने गणितीय गणनाओं को सरल बनाया और बीजगणित एवं कैलकुलस जैसे अधिक जटिल गणित को विकसित करने में मदद की, शून्य के बिना तो हमारे पास कंप्यूटर भी नहीं होते।"


प्रोफेसर मित्रा आर्यभट्ट के योगदान को रेखांकित करते हुए कहती हैं, "उन्होंने वर्गों और घनों की श्रेणी संबंधित अहम सिद्धांत दिए। ज्यामिति और त्रिकोणमिती का बखूबी इस्तेमाल किया। खगोल विज्ञान में भी उनका योगदान अहम था, वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि चंद्रमा की अपनी रोशनी नहीं है।


नालन्दा पुस्तकालय के अवशेष 
रत्नोदधि नौ मंजिला ऊंची थी और इसमे प्रज्ञापारमिता सूत्र और गुह्यसमाज सहित सबसे पवित्र पांडुलिपियों को रखा गया था। नालंदा में मौजूद किताबों की संख्या सटीक रूप से तो नहीं पता है फिर भी अनुमान के हिसाब से इनकी संख्या लाखों में मानी जाती है। इस पुस्तकालय ने न केवल धार्मिक पांडुलिपियां बल्कि व्याकरण, तर्क, साहित्य, ज्योतिष, खगोल विज्ञान और चिकित्सा जैसे विषयों पर अनेकों ग्रंथ भी मौजूद थे। नालंदा पुस्तकालय किताबों को सही तरीके से रखने के लिए अवश्य ही संस्कृत भाषाविद्, पाणिनि द्वारा बनाई गई वर्गीकरण योजना का प्रयोग करता था।














*आक्रमणकारियों द्वारा विध्वंश:*


इस विश्वविद्यालय पर तीन-तीन बार आक्रमण किए गए जिसके बाद दो बार इसे उस समय राज्य करने वाले राजाओं ने फिर से बनवा दिया पर जब तीसरी बार हमला हुआ जो कि अब तक का सबसे बड़ा और विनाशकारी हमला था।



*नालंदा विश्वविद्यालय का महाविनाश*


इस हमले में यहाँ के पुस्तकालय की काफी सारी किताबें और दुर्लभ ग्रंथ जल गए थे। माना जाता है की इस विश्वविद्यालय के विनाश से ही भारत में बौद्ध धर्म का भी पतन होना शुरू हो गया।


पहला हमला:

इस विश्वविद्यालय पर पहला हमला सम्राट स्कंदगुप्त के समय में 455-467 ईस्वी में हुआ था। यह हमला मिहिरकुल के तहत ह्यून की वजह से हुआ था। इस हमले में विश्वविद्यालय की इमारत के सात-साथ पुस्तकालय को भी काफी नुकसान पहुँचा था। बाद में स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारीयों के द्वारा पुस्तकालय की मरम्मत करवा दी गई और एक नई बड़ी इमारत बनवा दी गई।



दूसरा हमला:

इस विश्वविद्यालय पर दूसरा हमला 7वीं शताब्दी की शुरुआत में गौदास ने किया था। उस समय बौद्ध राजा हर्षवर्धन का शासन हुआ करता था। 606-648 ईस्वी में उन्होंने इस विश्वविद्यालय की मरम्मत करवाई थी।


तीसरा और सबसे विनाशकारी हमला:

इस विनाशकारी हमले के समय यहाँ पल राजवंश का राज्य हुआ करता था। मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी, जो की एक तुर्क सेनापति था, उस समय अवध में तैनात था। इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी और उसकी सेना ने लगभग 1193 सी ई में, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था।
उसने पुस्तकालय की किताबों को आग लगा दी। जो कुछ भी वहाँ था उसे लूट लिया विश्वविद्यालय में रह रहे हजारों भिक्षुओं और विद्वानों को इसलिए जला कर मार दिया क्योंकि वह इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार करना चाहता था और उसे बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार से चिढ़ थी। इन बातों का जिक्र फारसी इतिहासकार ‘मिनहाजुद्दीन सिराज’ द्वारा लिखी गई किताब ‘तबाकत-ए-नासिरी’ में मिलता है ।



*#खिलजी ने नष्ट की नालंदा विश्वविद्यालय*

खिलजी के द्वारा नालंदा के पुस्तकालय को जलाने के पीछे एक कहानी प्रसिद्ध है। कहा जाता है की खिलजी एक बार बुरी तरह से बीमार पड़ गया। सबने उसे नालंदा विश्वविद्यालय के वैद्य आचार्य राहुल श्रीभद्र से इलाज करवाने के लिए कहा पर खिलजी को ना तो आयुर्वेद पर ना वैद्यों पर जरा भी भरोसा था। उसने वैद्य जी के सामने कोई भी दवा ना खाने की शर्त रख दी।
वैद्य जी तैयार हो गए उन्होंने कहा कि आप कुरान के इतने पन्ने पढ़ लीजिएगा आप ठीक हो जाएंगे और ऐसा ही हुआ।ठीक होने के बाद उसने सोचा की इस तरह से तो भारतीय विद्वान और शिक्षक पूरी दुनिया में मशहूर हो जाएंगे। भारत से बौद्ध धर्म और आयुर्वेद के ज्ञान को मिटाने के लिए उसने नालंदा विश्वविद्यालय और इसके पुस्तकालय में आग लगा दी और हजारों धार्मिक विद्वानों और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाला।




Disclamer : यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यता, सूचनाओं और हमारे व्यक्तिगत स्तर जाच पर आधारित है।













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