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Thursday, August 24, 2023

ओरछा की धड़कन श्री राजाराम, 600 साल पुराना इतिहास

 संवाददाता - रोहिणी राजपूत













भारत में मंदिरों का इतिहास तो 5,000 वर्षों पुराना है। ऐसे ही एक पावन नगरी अयोध्या है जहां के रग-रग में श्रीराम विराजमान है, ठीक उसी प्रकार ओरछा की धड़कन में भी श्रीराम विराजमान है। अयोध्या से मध्य प्रदेश के ओरछा की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों नगरियो के बीच एक गहरा संबंध है।


ओरछा भारत के मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित कस्बा है जहां किले और मंदिरों का अपना एक अलग ही इतिहास है। ओरछा में स्थित श्रीराम राजा सरकार मंदिर में श्री राम के दर्शन करने के लिए भक्तगण दूर-दूर से आते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे, जबकि उनकी महारानी कुंवर गणेश, जो की राम उपासक थी। एक दिन मधुकरशाह और कुंवर गणेश बातें करते-करते दोनों अपने इष्टदेव को लेकर झगड़ा करने लगे। मधुकर शाह ने महारानी से बोल दिया कि यदि वह सच्ची राम भक्त है तो अयोध्या जाओ और रामजी को ओरछा लेकर आओ।















महारानी अयोध्या पहुंची और सरयू नदी के किनारे पूजा शुरु कर दी, पूजा करते-करते 7 दिन बीत चुके परंतु महारानी हो श्रीराम के दर्शन नहीं हुए। दर्शन न होने के कारण महारानी जी ने हताश होकर अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया। पर जब वह चौथी बार कूदने जा रही थी तो भगवान ने बाल रूप दर्शन दिया और कहा कि आप मेरी माता जानकी जैसी हो। श्री राम महारानी की गोद में बैठ कर तीन शर्तें मनवाने की बात कहने लगे।


पहली शर्त: मैं आपकी गोद में चलूंगा और जहां पर एक बार बैठ जाऊंगा वहां से दोबारा नहीं उठाऊंगा। 

दूसरी शर्त : जहां मैं रहूंगा वहां सिर्फ मैं ही राजा रहूंगा।

तीसरी शर्त: अयोध्या से ओरछा तक आपके साथ हम पैदल जाएंगे वह भी पुण्य नक्षत्र में ।


रानी तीनों शर्तें मानकर भगवान श्रीराम को अपनी गोद में लेकर पैदल ओरछा की तरफ निकल पड़ी। महारानी कुंवर को ओरछा पहुंचने में 8 महीने 28 दिन लगे। महारानी कुंवर गणेश ने श्रीराम को अपने महल की रसोईघर में थोड़े समय के लिए स्थापित कर दिया। जब श्रीराम राजा को चतुर्भुज मंदिर में मूर्ति की स्थापना करने के लिए ले जाया जा रहा था, तो वह मूर्ति रसोई से नहीं उठी तब भगवान राम का चमत्कार मान और उस महल को मंदिर बना दिया गया है। तभी से उसे जगह को रामराजा सरकार के नाम से जाना जाता ।


ओरछा में श्रीराम को दिन में चार बार सलामी दी जाती थी, शुरुआत में तलवार से उसके बाद तोपों से और आज के समय में उनको बंदूकन से सलामी दी जाती है। उनको बंदूकों से सलामी दी जाती है परंपरा 450 वर्षों की से चलती आ रही है।


रामनवमी के दिन पहले अयोध्या में राम जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, उसके बाद तुरंत ही आधे घंटे बाद ही ओरछा में श्री राम जन्मोत्सव मनाया जाता है।
























Disclamer: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यता, सूचनाओं और हमारी व्यक्तिगत खोज पर आधारित है














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